एक पंछी सुबह जगता है और फिर उड़ जाता है, खाना ढूंढने, पानी ढूंढने या कहा जाए बस जीने।
वो बस उड़ता है, वैसे भी उसके पास उड़ने के अलावा क्या काम होता है खाना - पानी या बच्चे, बस शायद इतनी सी तो है ज़िन्दगी। लगभग हर जीव का यही काम है। बेशक इंसान को छोड़ के उनके पास बहुत सारे काम हैं, क्योंकि उनके पास समाज है, नाम है, रुतबा है या बहुत कुछ और...!!!
The Endless God
ईश्वर और इंसान, जीवन और विज्ञान, नजरिया और विचार, कहानियां, और अनंत संसार...।।।
शनिवार, 1 सितंबर 2018
पंछी
गुरुवार, 30 अगस्त 2018
इंसानियत और धर्म...।।।
जब बात जिस्म और ज़रूरत से ऊपर जाती है,
अक्सर तभी वो एक मुहब्बत कहलाती है...!!!
जब बात चाहत और डर से ऊपर जाती है,
अक्सर तब वो पागलपन कहलाती है...!!!
जब बात मुझसे और तुझसे ऊपर जाती है,
अक्सर तब वो ईश्वर भक्ति कहलाती है...!!!
जब बात तेरी और बस मेरी रह जाती है,
तब वो बस आदत या ज़रूरत कहलाती है...!!!
जब बात तेरी ख्वाहिशों से ऊपर जाती है,
तब वो कुछ खोजने की हसरत कहलाती है...!!!
बेवजह भी तेरी जब कोई मदद कर जाए,
तभी तो वो इंसानियत और धर्म वाली बात कहलाती है।।।
रविवार, 12 अगस्त 2018
बस इक कहानी।।।
ये उस वक़्त की बात है, जिस वक़्त, वक़्त नहीं हुआ करता था।।।
एक इंसान था, जो एक छोटे से टापू पर रहा करता था।
उसके चारों तरफ जंगल और पानी ही पानी था। उसी टापू पर एक पहाड़ था। जो कि बहुत ऊंचा था,पहाड़ से थोड़ी सी दूर उसने एक लकड़ी का मकान बनाया था। क्योंकि वो उस टापू पर अकेला इंसान था। तो उसके पास खाना ढूंढने के अलावा कोई खास काम नहीं था। वो अक्सर अपने मकान को और अच्छा करने में लगा रहता। उसने जब से होश संभाला यहीं था।।।
आप कह सकते हो जंगल और वहां के जानवर ही उसके दोस्त या दुश्मन थे।
उसके चारों तरफ जंगल और पानी ही पानी था। उसी टापू पर एक पहाड़ था। जो कि बहुत ऊंचा था,पहाड़ से थोड़ी सी दूर उसने एक लकड़ी का मकान बनाया था। क्योंकि वो उस टापू पर अकेला इंसान था। तो उसके पास खाना ढूंढने के अलावा कोई खास काम नहीं था। वो अक्सर अपने मकान को और अच्छा करने में लगा रहता। उसने जब से होश संभाला यहीं था।।।
आप कह सकते हो जंगल और वहां के जानवर ही उसके दोस्त या दुश्मन थे।
एक दिन उसने सोचा क्यों ना पहाड़ चढ़ा जाए?
(वैसे भी जब कुछ काम न हो, तो कुछ न कुछ करते रहना चाहिए और इंसान की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि वो सब कुछ जानना चाहता है।।। जहां तक वो जान सकता है, बुद्धि से, ताकत से या अलग अलग तरीकों से)
दूसरे दिन वो सुबह जल्दी उठा। उसने कुछ खाने को फल लिए और चल पड़ा पहाड़ चढ़ने। इससे पहले वो कभी इस पहाड़ पर नहीं चढ़ा था। वो पहाड़ के सामने खड़ा होता है और कहता है, “मुझे नहीं पता आप कितने महान हो या ताकतवर लेकिन मुझे आप के सबसे ऊपर जाना है”।
अब पहाड़ है तो जवाब देने से रहा।
तो उसने पहाड़ चढ़ना शुरू किया, शुरुआत काफी आसान थी। वो थोड़ा ऊपर चढ गया, उससे ऊपर चढ़ने का कोई तरीका न था।
वो इंसान पहाड़ से कहता है कि,
“क्या आप इसे थोड़ा सा चढ़ने लायक कर सकते हो”???
अब पहाड़ जवाब थोड़ी न देता है…।।।
थोड़ी देर उसने इंतिज़ार किया लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।।।
वो गुस्से में,
आज नहीं कर पाया, कल फिर आऊंगा और अगर इधर से नहीं तो उधर से चढ जाऊंगा, मत करो मेरी मदद।
वो वापस अपने घर आ जाता है।।।
खाता है और सोने के लिए घर में जाता है, बस ढेर सारी लकड़ियां ही होती हैं उसके घर में क्योंकि और कुछ उसे बटोरना पसंद नहीं था।।।
अक्सर जब वो जंगल में इधर उधर फल ढूंढ़ता, तो लकड़ियां भी साथ में बटोर लाता।
फल खाता और लकड़ियों को घर में लगा देता।।।
वो आज सुबह लकड़ियां लाया तो था, लेकिन घर में नहीं लगाई, क्योंकि वो पहाड़ चढ़ने गया था।।। उसने लकड़ियां देखी और बोला:
“तुम सब मर गई हो, लेकिन वो पहाड़ ज़िंदा है और मुझे चढ़ने नहीं दे रहा है।
लेकिन मैं कैसे भी कर के उस पर चढ़ूंगा और जबतक न चढ़ा, इस घर में एक भी लकड़ी नहीं लगाऊंगा” और दरवाज़े के पास ही बैठ गया।।।
वो सोचता है: अगर मैं इधर से नहीं चढ़ सकता तो क्यों न दूसरी तरफ से चढ़ूं।
अगली सुबह वो फिर लकड़ियां और फल लाता है। लकड़ियां रखता और फल लेकर फिर पहाड़ की तरफ निकल जाता है।
इस रास्ते में एक बड़ा सा पेड़ था, जिससे वो अक्सर बातें करता था।
उसे लगता था, कि ये पेड़ उसकी बात समझता है। क्योंकि जब भी उसकी बात पूरी होती तो उस पेड़ की पत्तियां हिलती थी।।।
वो पेड़ से कहता है: “ये जो सामने पहाड़ है, बहुत ही घमंडी है। मुझे उधर से चढ़ने ही नहीं दे रहा था। तो मैंने सोचा क्यों ना इधर से चढ़ा जाए”।
क्या मैं चढ़ पाऊंगा???
पेड़ की पत्तियां हिलती हैं और वो मान लेता है कि मैं चढ जाऊंगा, और वो आगे बढ़ जाता है, पहाड़ के पास पहुंच के कहता है।
“आज तुम मुझे नहीं रोक सकते मैं चढ़ के ही रहूंगा”।।।
वो चढ़ना शुरू करता है और चढ़ने लगता है।।।
वो शाम तक ही आधा पहाड़ चढ़ जाता है। फिर एक जगह रुकता है। क्योंकी अंधेरा हो गया था और उसे कुछ भी आगे नहीं दिखाई दे रहा था।
अब पहाड़ है तो जवाब देने से रहा।
तो उसने पहाड़ चढ़ना शुरू किया, शुरुआत काफी आसान थी। वो थोड़ा ऊपर चढ गया, उससे ऊपर चढ़ने का कोई तरीका न था।
वो इंसान पहाड़ से कहता है कि,
“क्या आप इसे थोड़ा सा चढ़ने लायक कर सकते हो”???
अब पहाड़ जवाब थोड़ी न देता है…।।।
थोड़ी देर उसने इंतिज़ार किया लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।।।
वो गुस्से में,
आज नहीं कर पाया, कल फिर आऊंगा और अगर इधर से नहीं तो उधर से चढ जाऊंगा, मत करो मेरी मदद।
वो वापस अपने घर आ जाता है।।।
खाता है और सोने के लिए घर में जाता है, बस ढेर सारी लकड़ियां ही होती हैं उसके घर में क्योंकि और कुछ उसे बटोरना पसंद नहीं था।।।
अक्सर जब वो जंगल में इधर उधर फल ढूंढ़ता, तो लकड़ियां भी साथ में बटोर लाता।
फल खाता और लकड़ियों को घर में लगा देता।।।
वो आज सुबह लकड़ियां लाया तो था, लेकिन घर में नहीं लगाई, क्योंकि वो पहाड़ चढ़ने गया था।।। उसने लकड़ियां देखी और बोला:
“तुम सब मर गई हो, लेकिन वो पहाड़ ज़िंदा है और मुझे चढ़ने नहीं दे रहा है।
लेकिन मैं कैसे भी कर के उस पर चढ़ूंगा और जबतक न चढ़ा, इस घर में एक भी लकड़ी नहीं लगाऊंगा” और दरवाज़े के पास ही बैठ गया।।।
वो सोचता है: अगर मैं इधर से नहीं चढ़ सकता तो क्यों न दूसरी तरफ से चढ़ूं।
अगली सुबह वो फिर लकड़ियां और फल लाता है। लकड़ियां रखता और फल लेकर फिर पहाड़ की तरफ निकल जाता है।
इस रास्ते में एक बड़ा सा पेड़ था, जिससे वो अक्सर बातें करता था।
उसे लगता था, कि ये पेड़ उसकी बात समझता है। क्योंकि जब भी उसकी बात पूरी होती तो उस पेड़ की पत्तियां हिलती थी।।।
वो पेड़ से कहता है: “ये जो सामने पहाड़ है, बहुत ही घमंडी है। मुझे उधर से चढ़ने ही नहीं दे रहा था। तो मैंने सोचा क्यों ना इधर से चढ़ा जाए”।
क्या मैं चढ़ पाऊंगा???
पेड़ की पत्तियां हिलती हैं और वो मान लेता है कि मैं चढ जाऊंगा, और वो आगे बढ़ जाता है, पहाड़ के पास पहुंच के कहता है।
“आज तुम मुझे नहीं रोक सकते मैं चढ़ के ही रहूंगा”।।।
वो चढ़ना शुरू करता है और चढ़ने लगता है।।।
वो शाम तक ही आधा पहाड़ चढ़ जाता है। फिर एक जगह रुकता है। क्योंकी अंधेरा हो गया था और उसे कुछ भी आगे नहीं दिखाई दे रहा था।
वो फल खाता है और सो जाता है ये सोच कर कि आधा तो हो ही गया है आधा कल चढ़ जाऊंगा।
सुबह उसकी आंख खुलती है और वो सामने देखता है पहाड़ अभी भी उतना ही ऊंचा है, जितना नीचे से दिखाई देता था।
वो सोचता है ऐसे तो मैं पता नहीं कब पहुंच पाऊंगा???
फिर बोलता है: “मैं नीचे भी नहीं जा सकता, वरना ऐसे तो रोज़ मैं यहीं से लौट जाऊंगा”।
उसके पास फल भी बहुत कम बचे थे और पानी यहां कहीं था ही नहीं।।।
फिर भी वो ऊपर की तरफ ही चढ़ने लगता है तभी अचानक वो नीचे की तरफ गिरने लगता है। वो देखता है, कि जो उसके पांव के नीचे पत्थर था, वो नीचे गिर रहा था और साथ में वो भी।
पहाड़ में लड़ते भिड़ते वो ज़मीन पर आ गिरता है।।।
उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, की अचानक उसके शरीर के हर हिस्से में दर्द शुरू होता है। वो उस दर्द की वजह से बेहोश हो जाता है।।।
वो कई दिनों तक वहीं पड़ा रहा, फिर उसे होश आया। उसका शरीर हर तरफ से काटा पिटा था, खून जम चुका था, और दर्द भी बहुत था।
फिर भी वो अपने घर की तरफ चला। शायद उसका एक पैर टूट चुका था। लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इससे पहले उसे बस छोटी मोटी खरोचें ही लगी थीं।।।
वो किसी तरह अपने घर पहुंचता है। वो लकड़ियों पर लेट जाता है और कुछ लकड़ियां अपने ऊपर रख लेता है। उसके पास कुछ भी खाने को नहीं था, न ही उसमें इतनी ताकत थी, कि वो अब किसी तरह बाहर पानी पीने जा सके। वो पहाड़, खाने और पानी के बारे में सोचता – सोचता वहीं सो जाता है।
अगली सुबह उसकी आंख खुलती है, उसके शरीर में दर्द तो अभी हो रहा था, लेकिन उतना नहीं था, जितना की पहले था। वो लकड़ियां हटता है और किसी तरह बाहर आता है।
सामने ही एक छोटा सा तालाब था। जिससे वो ज्यादातर पानी पिया करता था, वो अक्सर उस तालाब से बातें करता रहता था।
सुबह उसकी आंख खुलती है और वो सामने देखता है पहाड़ अभी भी उतना ही ऊंचा है, जितना नीचे से दिखाई देता था।
वो सोचता है ऐसे तो मैं पता नहीं कब पहुंच पाऊंगा???
फिर बोलता है: “मैं नीचे भी नहीं जा सकता, वरना ऐसे तो रोज़ मैं यहीं से लौट जाऊंगा”।
उसके पास फल भी बहुत कम बचे थे और पानी यहां कहीं था ही नहीं।।।
फिर भी वो ऊपर की तरफ ही चढ़ने लगता है तभी अचानक वो नीचे की तरफ गिरने लगता है। वो देखता है, कि जो उसके पांव के नीचे पत्थर था, वो नीचे गिर रहा था और साथ में वो भी।
पहाड़ में लड़ते भिड़ते वो ज़मीन पर आ गिरता है।।।
उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, की अचानक उसके शरीर के हर हिस्से में दर्द शुरू होता है। वो उस दर्द की वजह से बेहोश हो जाता है।।।
वो कई दिनों तक वहीं पड़ा रहा, फिर उसे होश आया। उसका शरीर हर तरफ से काटा पिटा था, खून जम चुका था, और दर्द भी बहुत था।
फिर भी वो अपने घर की तरफ चला। शायद उसका एक पैर टूट चुका था। लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इससे पहले उसे बस छोटी मोटी खरोचें ही लगी थीं।।।
वो किसी तरह अपने घर पहुंचता है। वो लकड़ियों पर लेट जाता है और कुछ लकड़ियां अपने ऊपर रख लेता है। उसके पास कुछ भी खाने को नहीं था, न ही उसमें इतनी ताकत थी, कि वो अब किसी तरह बाहर पानी पीने जा सके। वो पहाड़, खाने और पानी के बारे में सोचता – सोचता वहीं सो जाता है।
अगली सुबह उसकी आंख खुलती है, उसके शरीर में दर्द तो अभी हो रहा था, लेकिन उतना नहीं था, जितना की पहले था। वो लकड़ियां हटता है और किसी तरह बाहर आता है।
सामने ही एक छोटा सा तालाब था। जिससे वो ज्यादातर पानी पिया करता था, वो अक्सर उस तालाब से बातें करता रहता था।
उसने पानी पिया और कहा: “तुम्हे पता है उस पहाड़ ने मुझे बहुत ऊपर से नीचे गिरा दिया और मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था। अब कम है, लेकिन क्या कोई ऐसा करता है किसी के साथ? देखो तुमने मुझे कभी दर्द नहीं दिया बल्कि पानी भी देते हो पीने को।
तो फिर न जाने उस पहाड़ को क्या तकलीफ है मुझसे, जो मुझे गिरा दिया।
तो फिर न जाने उस पहाड़ को क्या तकलीफ है मुझसे, जो मुझे गिरा दिया।
(अब उस पागल कौन समझाता की न तालाब उसे कुछ दे रहा था और न ही पहाड़ ने उसे गिराया था, सब कुछ बस उसकी वजह से ही हुआ था।
)
कुछ देर वो वहीं बैठा रहा। फिर वापस घर चला गया। उसने देखा एक फल उसके घर में पड़ा था। वो अपना सारा दर्द भूल जाता है।
दौड़ के फल उठता है और खाने लगता है, जैसे उसका सारा दर्द इस पल गायब हो गया हो।
फिर वो लकड़ियां लेता है और बाहर आ जाता है, पहली लकड़ी लगाता है, और दूसरी हाथ में लेता है कि अचानक उसकी नजर पहाड़ पर पड़ती है। वो लकड़ी छोड़ देता है, और जो लगाई थी, उसे भी निकाल देता है।
फिर कहता है: “मुझे पहले पहाड़ पर चढ़ना है, फिर मैं लकड़ियां लगाऊंगा”।
उसने लकड़ी छोड़ दी, और पहाड़ की तरह निकल जाता है।
वो पहाड़ के सामने, इस बार कुछ भी नहीं बोलता है और चढ़ने लग जाता है। हर रात वो सोता और सुबह चढ़ता। कुछ दिनों बाद वो पहाड़ की चोटी के काफी पास पहुंच गया। उसके शरीर से खून बह रहा था और टांग में बेहद दर्द था। लेकिन उसे वो बादल, जो चोटी के पास थे। इतने खूबसूरत लगे, की वो सबकुछ भूल गया। बस कुछ देर तक उन्हें ही निहारता रहा। फिर उसने अपने इधर उधर देखा। उसे पूरा टापू दिख रहा था, और बस पानी ही पानी। लेकिन उसको पहाड़ की चोटी पर जाने की सनक सवार थी, बादलों को छूना था।
तो वो फिर चढ़ने लग गया। वो जितना बादलों के पास जाता, बादल उससे दूर होते जाते। कुछ देर में वो पहाड़ की चोटी पर पहुंच जाता है। वो चोटी पर पहुंचता है और चारों तरफ देखता है। वो ऊपर था और बदल नीचे। जो दिख रहा था वो बस पहाड़, बदल, पेड़ और पानी था। वो कुछ देर चारों तरफ देखता है, और फिर लेट जाता है। उसके लेटते ही उसका ज़ख्म फिर से उभर आता है। जिसे वो पहाड़ चढ़ने और बादलों को छूने की खुशी में भूल जाता है। उसका दर्द इतना था कि वो फिर बेहोश ही जाता है।
दौड़ के फल उठता है और खाने लगता है, जैसे उसका सारा दर्द इस पल गायब हो गया हो।
फिर वो लकड़ियां लेता है और बाहर आ जाता है, पहली लकड़ी लगाता है, और दूसरी हाथ में लेता है कि अचानक उसकी नजर पहाड़ पर पड़ती है। वो लकड़ी छोड़ देता है, और जो लगाई थी, उसे भी निकाल देता है।
फिर कहता है: “मुझे पहले पहाड़ पर चढ़ना है, फिर मैं लकड़ियां लगाऊंगा”।
उसने लकड़ी छोड़ दी, और पहाड़ की तरह निकल जाता है।
वो पहाड़ के सामने, इस बार कुछ भी नहीं बोलता है और चढ़ने लग जाता है। हर रात वो सोता और सुबह चढ़ता। कुछ दिनों बाद वो पहाड़ की चोटी के काफी पास पहुंच गया। उसके शरीर से खून बह रहा था और टांग में बेहद दर्द था। लेकिन उसे वो बादल, जो चोटी के पास थे। इतने खूबसूरत लगे, की वो सबकुछ भूल गया। बस कुछ देर तक उन्हें ही निहारता रहा। फिर उसने अपने इधर उधर देखा। उसे पूरा टापू दिख रहा था, और बस पानी ही पानी। लेकिन उसको पहाड़ की चोटी पर जाने की सनक सवार थी, बादलों को छूना था।
तो वो फिर चढ़ने लग गया। वो जितना बादलों के पास जाता, बादल उससे दूर होते जाते। कुछ देर में वो पहाड़ की चोटी पर पहुंच जाता है। वो चोटी पर पहुंचता है और चारों तरफ देखता है। वो ऊपर था और बदल नीचे। जो दिख रहा था वो बस पहाड़, बदल, पेड़ और पानी था। वो कुछ देर चारों तरफ देखता है, और फिर लेट जाता है। उसके लेटते ही उसका ज़ख्म फिर से उभर आता है। जिसे वो पहाड़ चढ़ने और बादलों को छूने की खुशी में भूल जाता है। उसका दर्द इतना था कि वो फिर बेहोश ही जाता है।
कुछ देर बाद, कुछ लोग आते हैं और उसे उठा कर ले जाते हैं, उसका इलाज करते हैं। ३ दिन तक वो बेहोश रहता है।
उसकी आंख खुलती है और वो सोचता है।
क्या है ये सब?
उसने अभी तक वहां कोई इंसान नहीं देखा था और अचानक इतने लोग और इतनी चीज़े?
वो सदमे ही में था, की उसको एक आवाज़ सुनाई देती देती है।
कौन हो तुम?
वो देखता है इधर – उधर लेकिन हर कोई अपने काम में लगा था। उसकी तरफ किसी का कोई ध्यान नहीं था।
वो देखता है कि उसके शरीर में दर्द नहीं हो रहा है और ज़ख्म काफी कम हो गए हैं, वो मुस्कुराता है, और उठता है।
उसकी आंख खुलती है और वो सोचता है।
क्या है ये सब?
उसने अभी तक वहां कोई इंसान नहीं देखा था और अचानक इतने लोग और इतनी चीज़े?
वो सदमे ही में था, की उसको एक आवाज़ सुनाई देती देती है।
कौन हो तुम?
वो देखता है इधर – उधर लेकिन हर कोई अपने काम में लगा था। उसकी तरफ किसी का कोई ध्यान नहीं था।
वो देखता है कि उसके शरीर में दर्द नहीं हो रहा है और ज़ख्म काफी कम हो गए हैं, वो मुस्कुराता है, और उठता है।
( ये वैज्ञानिकों का एक समूह था, जिसमें ६ सदस्य थे, जो कि कुछ ऐसा यंत्र बनाने की कोशिश कर रहे थे। जिससे बिना बोले, किसी भी जीव से बात कर सकें या फिर वो काम करवा सकें, जो करवाना चाहते हैं। उनका काम अधूरा था। क्योंकि उनके पास एक चीज की कमी थी।
उन सब ने मिल कर कुछ प्रयोग किए थे, जिससे ये तय होता था, की अगर किसी पहाड़ पर हमेशा बादल रहे। तो एक ऐसी चीज का निर्माण होगा, जिसका न आकर होगा, न वजन और पूरी तरह पारदर्शी। उन्हें ये नहीं पता था, की वो किस वक्त होगा और पहाड़ के किस तरफ या किस हिस्से में होगा। उनके हिसाब से अगर ऐसा कुछ होगा भी तो बहुत कम। ये यहां एक साल के लिए आए थे और रोज़ ही उसे ढूंढ़ते, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं मिला था, जैसी चीज की उन्हे तलाश थी। उन्होंने कई प्रकार की मशीनों का प्रयोग किया। लेकिन अभी तक कुछ भी पता नहीं चला था)
उन सब ने मिल कर कुछ प्रयोग किए थे, जिससे ये तय होता था, की अगर किसी पहाड़ पर हमेशा बादल रहे। तो एक ऐसी चीज का निर्माण होगा, जिसका न आकर होगा, न वजन और पूरी तरह पारदर्शी। उन्हें ये नहीं पता था, की वो किस वक्त होगा और पहाड़ के किस तरफ या किस हिस्से में होगा। उनके हिसाब से अगर ऐसा कुछ होगा भी तो बहुत कम। ये यहां एक साल के लिए आए थे और रोज़ ही उसे ढूंढ़ते, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं मिला था, जैसी चीज की उन्हे तलाश थी। उन्होंने कई प्रकार की मशीनों का प्रयोग किया। लेकिन अभी तक कुछ भी पता नहीं चला था)
तभी एक वैज्ञानिक आ कर उससे बात करता है।
लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आता???
फिर वो कुछ इशारे करता है, और कुछ चीज दिखता है। कुछ देर ठहरता है और फिर ये सोच के आगे बढ़ जाता है कि शायद इसकी याददाश्त जा चुकी है, पागल है या आदिवासी है।।।
लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आता???
फिर वो कुछ इशारे करता है, और कुछ चीज दिखता है। कुछ देर ठहरता है और फिर ये सोच के आगे बढ़ जाता है कि शायद इसकी याददाश्त जा चुकी है, पागल है या आदिवासी है।।।
इंसान को बाहर जाने का रास्ता दिख रहा था। वो बाहर निकला, और बादलों को निहारते हुए पहाड़ के किनारे आ गया। वो बादलों को पकड़ने की कोशिश कर रहा था और हर बार उसके हाथ में कुछ भी नहीं आ रहा था।
एक वैज्ञानिक वहीं पर कुछ चीजों के साथ कुछ कर रहा था। वो उस वैज्ञानिक के पास गया और उसे देखने लगा।
वैज्ञानिक ने कुछ बोला।
तब उसने बादलों की तरफ इशारा किया।
फिर वैज्ञानिक कुछ बोला।
उसने फिर बादलों की तरफ इशारा किया और उसी तरफ चल दिया।
वैज्ञानिक को लगा शायद ये कुछ बताना चाहता है।
तो वैज्ञानिक भी उसी के साथ पीछे पीछे चला गया। वो फिर किनारे पर पहुंच कर बादलों को पकड़ने लगा। लेकिन उसके हाथ में इस बार भी कुछ नहीं आ रहा था।
उस वैज्ञानिक को लगा इसे कुछ दिख रहा है।
वैज्ञानिक फिर कुछ बोला।
वो वैज्ञानिक को पल देखता है और फिर बादलों को पकड़ने लगा जाता है।
वैज्ञानिक सोचने लगाता कि ये पागल है या तो इसे बादलों के बारे में अभी कुछ पता नहीं है या फिर इसे कुछ दिख रहा है।
तो उसने सभी को बुलाया और कहा कि शायद इसे कुछ दिख रहा है।
एक वैज्ञानिक वहीं पर कुछ चीजों के साथ कुछ कर रहा था। वो उस वैज्ञानिक के पास गया और उसे देखने लगा।
वैज्ञानिक ने कुछ बोला।
तब उसने बादलों की तरफ इशारा किया।
फिर वैज्ञानिक कुछ बोला।
उसने फिर बादलों की तरफ इशारा किया और उसी तरफ चल दिया।
वैज्ञानिक को लगा शायद ये कुछ बताना चाहता है।
तो वैज्ञानिक भी उसी के साथ पीछे पीछे चला गया। वो फिर किनारे पर पहुंच कर बादलों को पकड़ने लगा। लेकिन उसके हाथ में इस बार भी कुछ नहीं आ रहा था।
उस वैज्ञानिक को लगा इसे कुछ दिख रहा है।
वैज्ञानिक फिर कुछ बोला।
वो वैज्ञानिक को पल देखता है और फिर बादलों को पकड़ने लगा जाता है।
वैज्ञानिक सोचने लगाता कि ये पागल है या तो इसे बादलों के बारे में अभी कुछ पता नहीं है या फिर इसे कुछ दिख रहा है।
तो उसने सभी को बुलाया और कहा कि शायद इसे कुछ दिख रहा है।
पहले वैज्ञानिक ने कहा शायद इसकी याददाश्त जा चुकी है, पागल है और या तो आदिवासी है।
दूसरे वैज्ञानिक ने कहा मुझे लगता है, पागल है या तो इसे बादलों के बारे में अभी कुछ पता नहीं है और या फिर इसे कुछ दिख रहा है।
तीसरा वैज्ञानिक कहता है, देखो फालतू का वक़्त नहीं है शाम होने वाली है। और हमारे पास काफी कम दिन बचे हैं। इसको इसी के हाल पर छोड़ दो जब जाने लगेंगे, तो इसे फिर नीचे छोड़ देंगे। वैसे भी अगर ये यहां तक चढ़ के आ गया है । तो ये खुद को किसी तरह नीचे भी के जा सकता है। इतना कह के वो वापस चला जाता है।
चौथा वैज्ञानिक कहता है, “शायद ये इतनी ऊपर चढ़ के आया है इसलिए इसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है”।
पांचवा वैज्ञानिक मजाकिया अंदाज में कहता है, “शायद इसे कुछ दिख रहा हो और वैसे भी हम ऐसी चीज खोजने आए हैं, जो दिखती भी नहीं है
।”
छट्ठा वैज्ञानिक कहता है, मैं नहीं जानता।
फिर वो लोग उसकी तरफ देखने लगते हैं।
छट्ठा वैज्ञानिक कहता है: क्यों न इसे एक डंडा दिया जाए।
दूसरा वैज्ञानिक उसे एक लोहे का डंडा देता है।
वो पागल सा दिखने वाला इंसान उस डंडे को देखने लगता है, कुछ देर इधर उधर घूमता है, और फेंक देता है।
वो लोग उसे पागल समझ के वहीं छोड़ देते हैं और अपने अपने काम में लग जाते हैैं। वो उन बादलों को पकड़ने की कोशिश में लगा रहता है।
छट्ठा वैज्ञानिक कहता है: क्यों न इसे एक डंडा दिया जाए।
दूसरा वैज्ञानिक उसे एक लोहे का डंडा देता है।
वो पागल सा दिखने वाला इंसान उस डंडे को देखने लगता है, कुछ देर इधर उधर घूमता है, और फेंक देता है।
वो लोग उसे पागल समझ के वहीं छोड़ देते हैं और अपने अपने काम में लग जाते हैैं। वो उन बादलों को पकड़ने की कोशिश में लगा रहता है।
शाम हो रही थी और सूरज ढलने के कगार पर था।
तभी दो वैज्ञानिक आते हैं। एक उससे कुछ बोलता है, लेकिन उसका ध्यान बादलों को पकड़ने में ही लगा रहता है। दूसरा वैज्ञानिक उसे देखते हुए सोचता है शायद ये मैं ही गलत था, ये पागल ही है।
तभी दो वैज्ञानिक आते हैं। एक उससे कुछ बोलता है, लेकिन उसका ध्यान बादलों को पकड़ने में ही लगा रहता है। दूसरा वैज्ञानिक उसे देखते हुए सोचता है शायद ये मैं ही गलत था, ये पागल ही है।
अचानक दूसरा वैज्ञानिक पहले से चौंक के कहता है:
“कहां गया वो?”
अभी अभी तो वो यहीं था?
पहला कहता है छोड़ न, नीचे गिर गया होगा और न मरा होगा तो जबतक हम नीचे पहुंचेंगे। तब तक वैसे भी मर ही जाएगा और इतना कह कर वो वापस चला जाता है।
“कहां गया वो?”
अभी अभी तो वो यहीं था?
पहला कहता है छोड़ न, नीचे गिर गया होगा और न मरा होगा तो जबतक हम नीचे पहुंचेंगे। तब तक वैसे भी मर ही जाएगा और इतना कह कर वो वापस चला जाता है।
दूसरा वैज्ञानिक काफी देर तक वहीं खड़ा रहता है और सोचता है कि वो बस गायब कैसे हो गया?
वो इंसान जो वैज्ञानिक की नजरों से गायब हो गया था। वो शायद वहीं था।
बस वो था और कुछ भी नहीं, ना उसका शरीर न दिमाग, न समझ, और तभी अचानक उसे कुछ दिखता है ऐसा कुछ जो उसकी समझ से बाहर था।।।
उसने कभी वैसी चीज़ नहीं देखी थी। वो बस आगे आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। उसे वो हर चीज अच्छी लग रही थी। जो भी उसे दिखाई दे रही थी। वो घूमता रहता है।
उसने महसूस किया:
वो सब कुछ देख रहा था,
लेकिन न कुछ सोच पा रहा था, न ही कुछ समझ पा रहा था।
वो हर जगह था। लेकिन हर जगह से दूर।
वो हर तरफ था। लेकिन कहीं नहीं।
सब कुछ बस बिल्कुल साफ पानी जैसा था।
जो चमक रहा था और आर पार दिख रहा था।
फिर वो अचानक वहीं आ गया। जहां वो खड़ा था। वो घूमता है और देखता है। कुछ है जिस पर वो लोग चढ़ रहे हैं। वो समझने की कोशिश ही कर रहा था, की अचानक दूसरे वैज्ञानिक की नजर उस पर पड़ती है और वो उसकी तरफ भागता हुआ आता है।
उसने कभी वैसी चीज़ नहीं देखी थी। वो बस आगे आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। उसे वो हर चीज अच्छी लग रही थी। जो भी उसे दिखाई दे रही थी। वो घूमता रहता है।
उसने महसूस किया:
वो सब कुछ देख रहा था,
लेकिन न कुछ सोच पा रहा था, न ही कुछ समझ पा रहा था।
वो हर जगह था। लेकिन हर जगह से दूर।
वो हर तरफ था। लेकिन कहीं नहीं।
सब कुछ बस बिल्कुल साफ पानी जैसा था।
जो चमक रहा था और आर पार दिख रहा था।
फिर वो अचानक वहीं आ गया। जहां वो खड़ा था। वो घूमता है और देखता है। कुछ है जिस पर वो लोग चढ़ रहे हैं। वो समझने की कोशिश ही कर रहा था, की अचानक दूसरे वैज्ञानिक की नजर उस पर पड़ती है और वो उसकी तरफ भागता हुआ आता है।
ठहर के पुंछता है: कहां गए थे तुम?
इंसान बोलता है: पता नहीं।
वैज्ञानिक: तुम बोल लेते हो तब पहले क्यों नहीं बोला कुछ?
इंसान: मैंने अभी अभी सीखा है।
वैज्ञानिक, किससे?
इंसान, खुद से।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो, तुमने पहले कभी किसी से बात नहीं की?
इंसान: नहीं
वैज्ञानिक: सच में?
इंसान: हां।
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है तुम ९ दिन से गायब हो।
इंसान: मैं बस अभी अभी तो गया था।
वैज्ञानिक: भाई! तू सच में पागल है।
इंसान: ये तो बस आपके नजरिए की बात है।
वैज्ञानिक: ठीक है, लेकिन मेरा नजरिया किसी चीज से बंधा हुआ नहीं है, जो मैं अभी नहीं मान रहा, वो शायद कल मान लूं।
इंसान: ये तो बस आपकी समझ की बात है।
वैज्ञानिक: वो तो ठीक है लेकिन तुम कहां गए थे?
इंसान: कहीं नहीं, बस यहीं था या कहूं की हर जगह था।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो, मुझे तुम्हारी बात समझ नहीं आ रही है।
इंसान: आप कितने भी खुले विचार के क्यों न हों, लेकिन मैं जो कहना चाहता हूं, उसे शब्दों में नहीं समझा जा सकता। और वैसे भी शब्द और चित्र ही तो हैं। जिससे आप मुझे समझ सकते हैं।
वैज्ञानिक: अच्छा तुम्हे यहां कुछ मिला था?
इंसान: हां।।।
वैज्ञानिक: क्या???
इंसान: जो मैं आपको नहीं समझा सकता।
वैज्ञानिक: ठीक है, लेकिन कोई तो तरीका होगा?
इंसान: हां है, लेकिन वो तुम्हें ढूंढ़ना होगा।
इतने में उसे बाकी वैज्ञानिक आवाज़ लगते हैं..चलो देर हो रही है।
वैज्ञानिक: तुम अजीब हो। मैं अभी जा रहा हूं। लेकिन वापस आऊंगा। क्या तुम मुझसे मिलने आओगे यहां कभी???
इंसान: हां, अगर आ सका।
फिर वैज्ञानिक और उसका दल वहां से चला जाता है।
इंसान बोलता है: पता नहीं।
वैज्ञानिक: तुम बोल लेते हो तब पहले क्यों नहीं बोला कुछ?
इंसान: मैंने अभी अभी सीखा है।
वैज्ञानिक, किससे?
इंसान, खुद से।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो, तुमने पहले कभी किसी से बात नहीं की?
इंसान: नहीं
वैज्ञानिक: सच में?
इंसान: हां।
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है तुम ९ दिन से गायब हो।
इंसान: मैं बस अभी अभी तो गया था।
वैज्ञानिक: भाई! तू सच में पागल है।
इंसान: ये तो बस आपके नजरिए की बात है।
वैज्ञानिक: ठीक है, लेकिन मेरा नजरिया किसी चीज से बंधा हुआ नहीं है, जो मैं अभी नहीं मान रहा, वो शायद कल मान लूं।
इंसान: ये तो बस आपकी समझ की बात है।
वैज्ञानिक: वो तो ठीक है लेकिन तुम कहां गए थे?
इंसान: कहीं नहीं, बस यहीं था या कहूं की हर जगह था।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो, मुझे तुम्हारी बात समझ नहीं आ रही है।
इंसान: आप कितने भी खुले विचार के क्यों न हों, लेकिन मैं जो कहना चाहता हूं, उसे शब्दों में नहीं समझा जा सकता। और वैसे भी शब्द और चित्र ही तो हैं। जिससे आप मुझे समझ सकते हैं।
वैज्ञानिक: अच्छा तुम्हे यहां कुछ मिला था?
इंसान: हां।।।
वैज्ञानिक: क्या???
इंसान: जो मैं आपको नहीं समझा सकता।
वैज्ञानिक: ठीक है, लेकिन कोई तो तरीका होगा?
इंसान: हां है, लेकिन वो तुम्हें ढूंढ़ना होगा।
इतने में उसे बाकी वैज्ञानिक आवाज़ लगते हैं..चलो देर हो रही है।
वैज्ञानिक: तुम अजीब हो। मैं अभी जा रहा हूं। लेकिन वापस आऊंगा। क्या तुम मुझसे मिलने आओगे यहां कभी???
इंसान: हां, अगर आ सका।
फिर वैज्ञानिक और उसका दल वहां से चला जाता है।
वो इंसान कुछ देर वहीं खड़ा रहता है। फिर पहाड़ से वापस नीचे आ जाता है। वो बड़े ही आराम से उतर आया था, उस पहाड़ से जिस पर चढ़ने के लिए वो खुद को भी भूल गया था और न जाने क्या क्या किया था।
वो अपने घर को देखता है और मुस्कुराता है।
फिर वो जा कर सो जाता है।
दूसरे दिन वो उठता है, और उस बड़े से पेड़ के पास जाता है जो पहाड़ के रास्ते में था।
वो कहता है: कैसे हैं आप?
तभी उसे अपने अंदर ही एक आवाज़ सुनाई देती है।
मैं ठीक हूं। तुम कैसे हो? क्या तुम पहाड़ पर चढ़ पाए?
इंसान: हां।
पेड़: तुम्हे वहां कुछ मिला।
इंसान: हां।
पेड़: क्या?
इंसान: कुछ खास नहीं। लेकिन वो खास भी है। मैं तुमसे बात कर रहा हूं। ये भी उसी में से है।
पेड़: ऐसा क्या था, पहाड़ पर?
इंसान: कुछ ऐसा जैसे सबकुछ हो, और फिर भी न हो। जैसे पानी हो, लेकिन भिगोता न हो,
तुम उसी जैसे हो, लेकिन वो न हो।
जैसे तुम्हारा होना भी, तुम्हारा होना न हो।
जैसे तुम्हारा खोना भी, तुम्हारा खोना न हो।
जैसे तुम्हारा हंसना भी, तुम्हारा हंसना न हो।
जैसे तुम्हारा रोना भी, तुम्हारा रोना न हो।
जैसे तुम्हारा मदहोश होना भी, तुम्हारा मदहोश होना न हो।
जैसे तुम ही हो, लेकिन जब तुम भी न हो।
जैसे ज़मीं हो, लेकिन जब ज़मीं भी न हो।
जैसे आसमां हो, लेकिन जब आसमां भी न हो।
जैसे ये जहां तो हो, लेकिन जब ये जहां भी न हो।
जैसे कुछ यहां हो, लेकिन जब कुछ यहां भी न हो।
कुछ ऐसा ही ही है सब कुछ।
जो मैंने जाना अब मैं तुम्हे कैसे बता सकता हूं।
वो अपने घर को देखता है और मुस्कुराता है।
फिर वो जा कर सो जाता है।
दूसरे दिन वो उठता है, और उस बड़े से पेड़ के पास जाता है जो पहाड़ के रास्ते में था।
वो कहता है: कैसे हैं आप?
तभी उसे अपने अंदर ही एक आवाज़ सुनाई देती है।
मैं ठीक हूं। तुम कैसे हो? क्या तुम पहाड़ पर चढ़ पाए?
इंसान: हां।
पेड़: तुम्हे वहां कुछ मिला।
इंसान: हां।
पेड़: क्या?
इंसान: कुछ खास नहीं। लेकिन वो खास भी है। मैं तुमसे बात कर रहा हूं। ये भी उसी में से है।
पेड़: ऐसा क्या था, पहाड़ पर?
इंसान: कुछ ऐसा जैसे सबकुछ हो, और फिर भी न हो। जैसे पानी हो, लेकिन भिगोता न हो,
तुम उसी जैसे हो, लेकिन वो न हो।
जैसे तुम्हारा होना भी, तुम्हारा होना न हो।
जैसे तुम्हारा खोना भी, तुम्हारा खोना न हो।
जैसे तुम्हारा हंसना भी, तुम्हारा हंसना न हो।
जैसे तुम्हारा रोना भी, तुम्हारा रोना न हो।
जैसे तुम्हारा मदहोश होना भी, तुम्हारा मदहोश होना न हो।
जैसे तुम ही हो, लेकिन जब तुम भी न हो।
जैसे ज़मीं हो, लेकिन जब ज़मीं भी न हो।
जैसे आसमां हो, लेकिन जब आसमां भी न हो।
जैसे ये जहां तो हो, लेकिन जब ये जहां भी न हो।
जैसे कुछ यहां हो, लेकिन जब कुछ यहां भी न हो।
कुछ ऐसा ही ही है सब कुछ।
जो मैंने जाना अब मैं तुम्हे कैसे बता सकता हूं।
क्योंकि मैं तो बस इतना ही जानता या बता सकता हूं।।।
पेड़: रहने दो। तुम जानो और करो जो करना है इससे।
इंसान: ठीक है।
इतना कह के इंसान आगे बढ़ जाता है और उस पहाड़ के पास पहुंचता है। वो पहाड़ को देखता है, मुस्कुराता है और फिर कुछ फल और लकड़ियां लेकर वापस घर आ जाता है। पहले की तरह वो फल खाता है, लकड़ियां घर में लगता है और फिर तालाब के पास चला जाता है।
तालाब के पास पहुंच कर।
वह कहता है: कैसे हैं आप?
तलाब: बिल्कुल वैसे सा ही जैसा छोड़ के गए थे।
तुम बताओ क्या तुम पहाड़ पर चढ़े?
इंसान: हां
तालाब: क्या कुछ मिला तुम्हे वहां?
इंसान: नहीं, बस यही मिला की मैं तुमसे बात कर सकूं।
तालाब: अच्छा है! अब तुम मेरी बात तो समझ सकते हो? और मैं तुम्हारी।
इंसान: हां
तालाब: अच्छा! तो ये पहाड़ कितना ऊंचा है?
इंसान: बहुत, लेकिन इस टापू से छोटा है।
तालाब: क्या तुम बता सकते हो कि ये टापू कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन समंदर से छोटा है।
तालाब: अच्छा! तो समंदर कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन पृथ्वी से छोटा है।
तालाब: अच्छा! पृथ्वी कितनी बड़ी है?
इंसान: बहुत बड़ी, लेकिन सूरज से छोटी है।
तालाब: अच्छा! तो सूरज कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन आकाश से छोटा है।
तालाब: अच्छा! तो आकाश कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन किसी भी ज़िंदा चीज से छोटा है।
तालाब: क्या बकवास कर रहे हो! तुम्हारा मतलब है आकाश तुमसे छोटा है?
इंसान: नहीं। हर ज़िंदा चीज से छोटा।
तालाब: तुम भी तो ज़िंदा हो?
इंसान: हां।
तालाब: अच्छा तो क्या मेरी एक बूंद से भी छोटा है?
इंसान: हां, उससे बहुत छोटा।
तालाब: अच्छा ज़िंदा चीज से क्या बड़ा है?
इंसान: वो जिसकी वजह से सब कुछ है।
तालाब: और वो क्या है जिसकी वजह से सब कुछ है?
इंसान: मुझे नहीं पता।
पेड़: रहने दो। तुम जानो और करो जो करना है इससे।
इंसान: ठीक है।
इतना कह के इंसान आगे बढ़ जाता है और उस पहाड़ के पास पहुंचता है। वो पहाड़ को देखता है, मुस्कुराता है और फिर कुछ फल और लकड़ियां लेकर वापस घर आ जाता है। पहले की तरह वो फल खाता है, लकड़ियां घर में लगता है और फिर तालाब के पास चला जाता है।
तालाब के पास पहुंच कर।
वह कहता है: कैसे हैं आप?
तलाब: बिल्कुल वैसे सा ही जैसा छोड़ के गए थे।
तुम बताओ क्या तुम पहाड़ पर चढ़े?
इंसान: हां
तालाब: क्या कुछ मिला तुम्हे वहां?
इंसान: नहीं, बस यही मिला की मैं तुमसे बात कर सकूं।
तालाब: अच्छा है! अब तुम मेरी बात तो समझ सकते हो? और मैं तुम्हारी।
इंसान: हां
तालाब: अच्छा! तो ये पहाड़ कितना ऊंचा है?
इंसान: बहुत, लेकिन इस टापू से छोटा है।
तालाब: क्या तुम बता सकते हो कि ये टापू कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन समंदर से छोटा है।
तालाब: अच्छा! तो समंदर कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन पृथ्वी से छोटा है।
तालाब: अच्छा! पृथ्वी कितनी बड़ी है?
इंसान: बहुत बड़ी, लेकिन सूरज से छोटी है।
तालाब: अच्छा! तो सूरज कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन आकाश से छोटा है।
तालाब: अच्छा! तो आकाश कितना बड़ा है?
इंसान: बहुत बड़ा, लेकिन किसी भी ज़िंदा चीज से छोटा है।
तालाब: क्या बकवास कर रहे हो! तुम्हारा मतलब है आकाश तुमसे छोटा है?
इंसान: नहीं। हर ज़िंदा चीज से छोटा।
तालाब: तुम भी तो ज़िंदा हो?
इंसान: हां।
तालाब: अच्छा तो क्या मेरी एक बूंद से भी छोटा है?
इंसान: हां, उससे बहुत छोटा।
तालाब: अच्छा ज़िंदा चीज से क्या बड़ा है?
इंसान: वो जिसकी वजह से सब कुछ है।
तालाब: और वो क्या है जिसकी वजह से सब कुछ है?
इंसान: मुझे नहीं पता।
वो पानी पीता है, और वापस घर की तरफ चला जाता है।।।
वो रोज़ सुबह उठता, फल और लकड़ियां लाता, फल खाता और घर में लकड़ियां लगाता। कभी पेड़ से बात करता तो कभी तालाब से।
ऐसे करते करते…. बहुत सारा वक़्त बीत गया वो बूढ़ा हो चला था।
एक दोपहर वो अपने घर में लकड़ियां लगा रहा था, की तभी उसे अपने पीछे से एक आवाज़ सुनाई देती है। वो पीछे घूम के देखता है, की वो दूसरा वैज्ञानिक जो उसे कभी पहाड़ पर मिला था, सामने से आ रहा है।
वैज्ञानिक: तुम तो काफी बूढ़े हो गए।
इंसान: जी हां, मेरा शरीर बूढ़ा हो गया है।
वैज्ञानिक: अच्छा तुम्हारे साथ कोई और नहीं रहता है?
इंसान: नहीं। मेरे साथ तो पूरी दुनियां रहती है।
वैज्ञानिक चौंक के कहता है: क्या? यहां तो तुम बस अकेले ही दिख रहे हो?
इंसान: ये तो बस आपका नजरिया है।
वैज्ञानिक गुस्से में: अच्छा तुम ये बताओ, की नजरिया क्या है?
इंसान: वही, जो तुमने आज तक देखा, जाना, समझा और महसूस किया।
वैज्ञानिक: मैंने लगभग पूरी दुनियां देखी है, और तुम इस टापू से कभी बाहर नहीं गए। तो मुझे जानकारी ज्यादा होगी न।
इंसान: बिल्कुल अगर आपको ऐसा लगता है। तो बिल्कुल ऐसा ही है। लेकिन आप कुछ ढूंढ रहे थे। क्या आपको मिला?
वैज्ञानिक: नहीं।
इंसान: अच्छा! अगर मैं आपको वो दिला दूं। जिसका ना आकर हो, न वजन हो, और न ही उसे आप देख सकें। तो आप उसे के कैसे ले जाएंगे।
वैज्ञानिक थोड़ी देर सोचता है और कहता है: मैं उसे किसी न किसी तरीके से तो ज़रूर ले जाऊंगा। अगर तुम मुझे दिला देते हो।
इंसान: अच्छा आपको मेरे साथ पहाड़ चढ़ना होगा।
वैज्ञानिक: मेरे पास हेलीकॉप्टर है, हम उड़ के जा सकते हैं?
इंसान: नहीं, ऐसे वो नहीं मिलेगा। आपको मेरे साथ उस पहाड़ पर चढ़ना होगा।
वैज्ञानिक: अच्छा! तुम बूढ़े हो चुके हो, क्या तुम चढ़ पाओगे?
इंसान: वो तो चढ़ने के बाद ही पता चलेगा।
वैज्ञानिक: अच्छा! ठीक है अगर तुम चढ़ सकते हो तो मैं भी चढ़ ही लूंगा। लेकिन वो चीज मुझे मिल जाएगी। ये कैसे मैं मान लूं?
इंसान: मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे मैं आपको आश्वासन दे सकूं, की वो मिल ही जाएगी।
वैज्ञानिक: अच्छा! अगर वो पदार्थ तुम्हे पता है। तो बताओगे कैसा है?
इंसान: कभी नंगी आंखों से पानी की बूंद गिरते देखी है? जब उसके पीछे आकाश के अलावा कुछ और न हो, और जब वो ज़मीन से बहुत ऊपर हो।
वैज्ञानिक: नहीं। तो मतलब वो एक बूंद जैसी है?
इंसान: नहीं। लेकिन जब वो बहते पानी या किसी जगह इकट्ठे पानी में गिरता है। तो हर तरह की आकृतियां बनाता है और लगता है हर तरफ जा रहा है।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो वो कितना बड़ा है।
इंसान: जिस जगह तक लोग वैज्ञानिक ढंग से नहीं पहुंच सकते, बस उतना ही छोटा या बड़ा है।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो?
देखो विज्ञान खुले विचार का है, जिसे वो आज नहीं मानता, शायद कल जान जाए और मान ले।
वैसे भी हम रोज़ ही और बेहतर हो रहे हैं। हमारा विकास हो रहा है, सुविधाओं का विकास हो रहा है। हमारे पास कल कुछ भी नहीं था और आज हम चांद तक पहुंच गए हैं। तुम बस इस छोटे से टापू पर ही रहे हो आजतक, या फिर किसी तरह उस पहाड़ पर चढ़ गए थे। तुम्हे अभी कुछ भी नहीं पता कि दुनियां कैसी है। क्या क्या है दुनियां में।
इंसान: ये आपका नजरिया है, और बेशक आप सही हैं।
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है, हमने रोबोट भी बनाए हैं, जो इंसान जैसे होते हैं।
इंसान: नहीं। लेकिन वो इंसान जैसे होते हैं, इंसान नहीं।
वैज्ञानिक: अच्छा, ये बताओ कि उस पहाड़ पर चढ़ने और उस पदार्थ को पाने में कितने दिन लगेंगे।
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक: अच्छा पहाड़ पर चढ़ने के बाद कितना वक़्त लगेगा।
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक गुस्से में: क्या तुम्हे कुछ पता भी है?
या तो तुम्हे उसके बारे में कुछ भी नहीं पता और अगर पता भी है, तो ऐसी बातें, क्यों कर रहे हो, जिनका कोई मतलब नहीं बनता।
फिर नरमी भरे शब्द के कहता है:
अच्छा! क्या तुम मुझे ये बता सकते हो, की वो तुम्हे कैसे मिला था।
इंसान: हां, मैं बादलों को पकड़ रहा था, तुमने देखा तो था।
वैज्ञानिक चौंक के: लेकिन तुम तो उस वक़्त गायब हो गए थे।
इंसान: नहीं। मैं वहीं लेटा था, बस तुम मुझे देख नहीं पा रहे थे, दूरी और बादलों की वजह से।
वैज्ञानिक: अच्छा हो सकता है! लेकिन तुमने मुझसे कुछ क्यों नहीं बताया?
इंसान: उस वक़्त मैं तुमसे कुछ कह नहीं सकता था।
वैज्ञानिक: क्यों???
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक: अच्छा! ऐसा क्या हुआ था? कहीं उस पदार्थ का असर तो नहीं था।
ऐसे करते करते…. बहुत सारा वक़्त बीत गया वो बूढ़ा हो चला था।
एक दोपहर वो अपने घर में लकड़ियां लगा रहा था, की तभी उसे अपने पीछे से एक आवाज़ सुनाई देती है। वो पीछे घूम के देखता है, की वो दूसरा वैज्ञानिक जो उसे कभी पहाड़ पर मिला था, सामने से आ रहा है।
वैज्ञानिक: तुम तो काफी बूढ़े हो गए।
इंसान: जी हां, मेरा शरीर बूढ़ा हो गया है।
वैज्ञानिक: अच्छा तुम्हारे साथ कोई और नहीं रहता है?
इंसान: नहीं। मेरे साथ तो पूरी दुनियां रहती है।
वैज्ञानिक चौंक के कहता है: क्या? यहां तो तुम बस अकेले ही दिख रहे हो?
इंसान: ये तो बस आपका नजरिया है।
वैज्ञानिक गुस्से में: अच्छा तुम ये बताओ, की नजरिया क्या है?
इंसान: वही, जो तुमने आज तक देखा, जाना, समझा और महसूस किया।
वैज्ञानिक: मैंने लगभग पूरी दुनियां देखी है, और तुम इस टापू से कभी बाहर नहीं गए। तो मुझे जानकारी ज्यादा होगी न।
इंसान: बिल्कुल अगर आपको ऐसा लगता है। तो बिल्कुल ऐसा ही है। लेकिन आप कुछ ढूंढ रहे थे। क्या आपको मिला?
वैज्ञानिक: नहीं।
इंसान: अच्छा! अगर मैं आपको वो दिला दूं। जिसका ना आकर हो, न वजन हो, और न ही उसे आप देख सकें। तो आप उसे के कैसे ले जाएंगे।
वैज्ञानिक थोड़ी देर सोचता है और कहता है: मैं उसे किसी न किसी तरीके से तो ज़रूर ले जाऊंगा। अगर तुम मुझे दिला देते हो।
इंसान: अच्छा आपको मेरे साथ पहाड़ चढ़ना होगा।
वैज्ञानिक: मेरे पास हेलीकॉप्टर है, हम उड़ के जा सकते हैं?
इंसान: नहीं, ऐसे वो नहीं मिलेगा। आपको मेरे साथ उस पहाड़ पर चढ़ना होगा।
वैज्ञानिक: अच्छा! तुम बूढ़े हो चुके हो, क्या तुम चढ़ पाओगे?
इंसान: वो तो चढ़ने के बाद ही पता चलेगा।
वैज्ञानिक: अच्छा! ठीक है अगर तुम चढ़ सकते हो तो मैं भी चढ़ ही लूंगा। लेकिन वो चीज मुझे मिल जाएगी। ये कैसे मैं मान लूं?
इंसान: मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे मैं आपको आश्वासन दे सकूं, की वो मिल ही जाएगी।
वैज्ञानिक: अच्छा! अगर वो पदार्थ तुम्हे पता है। तो बताओगे कैसा है?
इंसान: कभी नंगी आंखों से पानी की बूंद गिरते देखी है? जब उसके पीछे आकाश के अलावा कुछ और न हो, और जब वो ज़मीन से बहुत ऊपर हो।
वैज्ञानिक: नहीं। तो मतलब वो एक बूंद जैसी है?
इंसान: नहीं। लेकिन जब वो बहते पानी या किसी जगह इकट्ठे पानी में गिरता है। तो हर तरह की आकृतियां बनाता है और लगता है हर तरफ जा रहा है।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो वो कितना बड़ा है।
इंसान: जिस जगह तक लोग वैज्ञानिक ढंग से नहीं पहुंच सकते, बस उतना ही छोटा या बड़ा है।
वैज्ञानिक: क्या बकवास कर रहे हो?
देखो विज्ञान खुले विचार का है, जिसे वो आज नहीं मानता, शायद कल जान जाए और मान ले।
वैसे भी हम रोज़ ही और बेहतर हो रहे हैं। हमारा विकास हो रहा है, सुविधाओं का विकास हो रहा है। हमारे पास कल कुछ भी नहीं था और आज हम चांद तक पहुंच गए हैं। तुम बस इस छोटे से टापू पर ही रहे हो आजतक, या फिर किसी तरह उस पहाड़ पर चढ़ गए थे। तुम्हे अभी कुछ भी नहीं पता कि दुनियां कैसी है। क्या क्या है दुनियां में।
इंसान: ये आपका नजरिया है, और बेशक आप सही हैं।
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है, हमने रोबोट भी बनाए हैं, जो इंसान जैसे होते हैं।
इंसान: नहीं। लेकिन वो इंसान जैसे होते हैं, इंसान नहीं।
वैज्ञानिक: अच्छा, ये बताओ कि उस पहाड़ पर चढ़ने और उस पदार्थ को पाने में कितने दिन लगेंगे।
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक: अच्छा पहाड़ पर चढ़ने के बाद कितना वक़्त लगेगा।
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक गुस्से में: क्या तुम्हे कुछ पता भी है?
या तो तुम्हे उसके बारे में कुछ भी नहीं पता और अगर पता भी है, तो ऐसी बातें, क्यों कर रहे हो, जिनका कोई मतलब नहीं बनता।
फिर नरमी भरे शब्द के कहता है:
अच्छा! क्या तुम मुझे ये बता सकते हो, की वो तुम्हे कैसे मिला था।
इंसान: हां, मैं बादलों को पकड़ रहा था, तुमने देखा तो था।
वैज्ञानिक चौंक के: लेकिन तुम तो उस वक़्त गायब हो गए थे।
इंसान: नहीं। मैं वहीं लेटा था, बस तुम मुझे देख नहीं पा रहे थे, दूरी और बादलों की वजह से।
वैज्ञानिक: अच्छा हो सकता है! लेकिन तुमने मुझसे कुछ क्यों नहीं बताया?
इंसान: उस वक़्त मैं तुमसे कुछ कह नहीं सकता था।
वैज्ञानिक: क्यों???
इंसान: मुझे नहीं पता।
वैज्ञानिक: अच्छा! ऐसा क्या हुआ था? कहीं उस पदार्थ का असर तो नहीं था।
इंसान: मुझे नहीं पता।
लेकिन मैं उन बादलों के बीच था,
जिन्हे मैं पकड़ने की कोशिश कर रहा था।
मुझे लगा मैं उस पेड़ का छोटा सा हिस्सा था,
जिससे में अक्सर बातें किया करता था।
मुझे लगा कि मैं एक समंदर हूं,
जिसे एक बूंद में समेट दिया गया था।
मुझे लगा मैं हर जगह हूं, और कहीं भी नहीं।
आप कह सकते हो, की मैं था लेकिन न के बराबर।
वैज्ञानिक: तुम सच में पागल हो। तुम्हारे साथ तो अब ऊपर चढ़ने का मन भी नहीं कर है। ऐसा करते हैं।
जिन्हे मैं पकड़ने की कोशिश कर रहा था।
मुझे लगा मैं उस पेड़ का छोटा सा हिस्सा था,
जिससे में अक्सर बातें किया करता था।
मुझे लगा कि मैं एक समंदर हूं,
जिसे एक बूंद में समेट दिया गया था।
मुझे लगा मैं हर जगह हूं, और कहीं भी नहीं।
आप कह सकते हो, की मैं था लेकिन न के बराबर।
वैज्ञानिक: तुम सच में पागल हो। तुम्हारे साथ तो अब ऊपर चढ़ने का मन भी नहीं कर है। ऐसा करते हैं।
मैं हेलीकॉप्टर से जाता हूं, और अगर तुम साथ चलना चाहो तो ठीक या तुम फिर चढ़ के आ जाओ।
इंसान: ठीक है।
वैज्ञानिक हेलीकॉप्टर की तरफ चला जाता है, और इंसान लकड़ियां घर में लगा कर कुछ फल लेता है।
इंसान: ठीक है।
वैज्ञानिक हेलीकॉप्टर की तरफ चला जाता है, और इंसान लकड़ियां घर में लगा कर कुछ फल लेता है।
फिर पहाड़ की तरफ चल देता है।
पेड़ के पास पहुंच कर वो कहता है।
क्या तुम भी पहाड़ पर चढ़ना चाहोगे?
पेड़: नहीं! मैं यहीं ठीक हूं। क्या तुम फिर से पहाड़ पर चढ़ने जा रहे हो?
इंसान: हां।
पेड़ के पास पहुंच कर वो कहता है।
क्या तुम भी पहाड़ पर चढ़ना चाहोगे?
पेड़: नहीं! मैं यहीं ठीक हूं। क्या तुम फिर से पहाड़ पर चढ़ने जा रहे हो?
इंसान: हां।
इतना कह कर वो पहाड़ की तरफ चल देता है। वो पहाड़ के पास पहुंचता है और पहाड़ चढ़ना शुरू कर देता है वो बूढ़ा इंसान इस बार पहले से जल्दी और आराम से पहाड़ चढ़ जाता है।
वैज्ञानिक उसे देखता है और पुंछता है: तुम इतनी जल्दी पहाड़ पर कैसे चढ़ कर आ गए? मुझे लगा तुम्हे कई और दिन लगेंगे, यहां तक पहुंचने में या फिर आ ही नहीं पाओगे।
इंसान: मैं बस चोटी को देखते हुए आ रहा था। बाकी आपकी सोच, समझ और नजरिया था।
वैज्ञानिक: तुम सच में अजीब हो, अच्छा किस तरफ मिलेगा वो पदार्थ?
इंसान: बादलों के अंदर।
वैज्ञानिक: अच्छा ठीक है! लेकिन बादलों के अंदर पानी होता है और यहां हर तरफ बादल हैं?
इंसान: हां।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो में उसे कैसे पा सकता हूं?
वैज्ञानिक उसे देखता है और पुंछता है: तुम इतनी जल्दी पहाड़ पर कैसे चढ़ कर आ गए? मुझे लगा तुम्हे कई और दिन लगेंगे, यहां तक पहुंचने में या फिर आ ही नहीं पाओगे।
इंसान: मैं बस चोटी को देखते हुए आ रहा था। बाकी आपकी सोच, समझ और नजरिया था।
वैज्ञानिक: तुम सच में अजीब हो, अच्छा किस तरफ मिलेगा वो पदार्थ?
इंसान: बादलों के अंदर।
वैज्ञानिक: अच्छा ठीक है! लेकिन बादलों के अंदर पानी होता है और यहां हर तरफ बादल हैं?
इंसान: हां।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो में उसे कैसे पा सकता हूं?
इंसान: ये मुझे नहीं पता। और फिर इंसान बादलों के पास जाकर उन्हें पकड़ने लगता है।
वैज्ञानिक भी जैसा जो कुछ वो कर रहा था वैसे ही करने लगा।
वैज्ञानिक भी जैसा जो कुछ वो कर रहा था वैसे ही करने लगा।
शाम होने को आ गई थी।
लेकिन वैज्ञानिक अब भी बस उन बादलों को पकड़ने की कोशिश में लगा था।
इंसान कहता है: शाम हो गई है, क्यों ना खाना खा के सोया जाए?
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है वो पदार्थ कब होता है? मतलब किस वक़्त।
इंसान: नहीं। वो तो बस मुझे मिल गया था।
वैज्ञानिक: मतलब तुम्हे नहीं पता कि वो कैसे मिलेगा या कब मिलेगा?
इंसान: नहीं, मैंने ये आपको पहले भी बताया था।
वैज्ञानिक: कहां कहा था, तुमने तो बस कहा था कि मेरे साथ पहाड़ चढ़ो, मिल जाएगा।
इंसान: हां
वैज्ञानिक: अच्छा तो पहाड़ के सबसे ऊपर ही तो खड़ा हूं। लेकिन वो मुझे अभी तक नहीं मिला।
लेकिन वैज्ञानिक अब भी बस उन बादलों को पकड़ने की कोशिश में लगा था।
इंसान कहता है: शाम हो गई है, क्यों ना खाना खा के सोया जाए?
वैज्ञानिक: तुम्हे पता है वो पदार्थ कब होता है? मतलब किस वक़्त।
इंसान: नहीं। वो तो बस मुझे मिल गया था।
वैज्ञानिक: मतलब तुम्हे नहीं पता कि वो कैसे मिलेगा या कब मिलेगा?
इंसान: नहीं, मैंने ये आपको पहले भी बताया था।
वैज्ञानिक: कहां कहा था, तुमने तो बस कहा था कि मेरे साथ पहाड़ चढ़ो, मिल जाएगा।
इंसान: हां
वैज्ञानिक: अच्छा तो पहाड़ के सबसे ऊपर ही तो खड़ा हूं। लेकिन वो मुझे अभी तक नहीं मिला।
इंसान: मैंने कहा था, की आप मेरे साथ पहाड़ पर चढ़ो और वो मिल जाएगा। लेकिन आप तो हेलीकॉप्टर से आए थे। शायद ये पहाड़ वो पदार्थ बस उन्हीं को देता हो। जो पहाड़ पर सबकुछ भूल कर चढ़ जाते हैं। जब मैंने पहाड़ पर चढ़ने की शुरुआत की थी, तो मुझे बस पहाड़ के सबसे ऊपर चढ़ने की सनक थी। मुझे ये भी याद नहीं था, की मेरा पांव टूट चुका है या शरीर पर बेहिसाब घाव थे या कुछ और मुझे तो बस चोटी पर पहुंचना था। वहां क्या मिलेगा या नहीं ये तो मैंने सोचा ही नहीं था।
वैज्ञानिक: तुम दार्शनिक जैसी बातें कर रहे हो।
इंसान: ये तो बस आपका नज़रिया है।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो क्या वो मुझे नहीं मिल सकता?
इंसान: मुझे नहीं पता, वो आपको खुद ढूंढ़ना होगा।
वैज्ञानिक: तुम दार्शनिक जैसी बातें कर रहे हो।
इंसान: ये तो बस आपका नज़रिया है।
वैज्ञानिक: अच्छा! तो क्या वो मुझे नहीं मिल सकता?
इंसान: मुझे नहीं पता, वो आपको खुद ढूंढ़ना होगा।
वैज्ञानिक थोड़ी देर सोचता है, “की कहीं ये बस मुझे बेवकूफ ही तो नहीं बना रहा, लेकिन इस बूढ़े को मुझे बेवकूफ बनाने की क्या जरूरत आ पड़ी, क्या मिलेगा इस इससे। या फिर इसे ही कुछ नहीं पता, बोलना आ गया है। तो कुछ भी बोले जा रहा है और शायद ये भी हो सकता है कि इस पर उस पदार्थ का असर हो या फिर ये दिमागी संतुलन खो बैठा है। वैसे भी अगर कोई इंसान अकेला रहे तो वो पागल तो हो ही जाता है”।
फिर बोलता है: अच्छा ठीक है! जो कुछ भी है, वैसे भी अब मुझे वो नहीं चाहिए। मुझे कल कहीं पहुंचना है। तो क्या मैं तुम्हे नीचे तक छोड़ दूं।
इंसान: धन्यवाद। शायद मैं खुद जा हा सकता हूं।
वैज्ञानिक: जैसी तुम्हारी इच्छा, इतना कह कर वो हेलीकॉप्टर में बैठता है और चला जाता है।।।
इंसान: धन्यवाद। शायद मैं खुद जा हा सकता हूं।
वैज्ञानिक: जैसी तुम्हारी इच्छा, इतना कह कर वो हेलीकॉप्टर में बैठता है और चला जाता है।।।
आगे………इंतिजार………..वक़्त……….और इंसान।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
पंछी
एक पंछी सुबह जगता है और फिर उड़ जाता है, खाना ढूंढने, पानी ढूंढने या कहा जाए बस जीने। वो बस उड़ता है, वैसे भी उसके पास उड़ने के अलावा क्या ...
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एक पंछी सुबह जगता है और फिर उड़ जाता है, खाना ढूंढने, पानी ढूंढने या कहा जाए बस जीने। वो बस उड़ता है, वैसे भी उसके पास उड़ने के अलावा क्या ...
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ये उस वक़्त की बात है, जिस वक़्त, वक़्त नहीं हुआ करता था।।। एक इंसान था, जो एक छोटे से टापू पर रहा करता था। उसके चारों तरफ जंगल और पानी ...
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जब बात जिस्म और ज़रूरत से ऊपर जाती है, अक्सर तभी वो एक मुहब्बत कहलाती है...!!! जब बात चाहत और डर से ऊपर जाती है, अक्सर तब वो पागलपन कहलात...